दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे, जिसे आधिकारिक रूप से एनएच 709बी के नाम से जाना जाता है, भारत की राजधानी दिल्ली को उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजना है। यह 210 किलोमीटर लंबा, 6-लेन (आवश्यकता अनुसार 8-लेन तक विस्तारित) एक्सेस-कंट्रोल्ड एक्सप्रेसवे है, जो दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों से होकर गुजरता है। इसका उद्देश्य दोनों शहरों के बीच यात्रा के समय को वर्तमान 6.5 घंटे से घटाकर मात्र 2.5 घंटे करना है।
रूट मैप और संरचना
एक्सप्रेसवे का पहला चरण अक्षरधाम मंदिर के पास दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे से शुरू होकर ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (EPE) के मविकला इंटरचेंज तक जाता है। यह 32 किलोमीटर लंबा खंड 6-लेन का है, जिसमें 4-लेन की सर्विस लेन भी शामिल है। इस खंड में 6.4 किलोमीटर का एलिवेटेड हिस्सा है, जो गीता कॉलोनी से खजूरी खास तक फैला है। दिल्ली वासियों के लिए यह हिस्सा टोल-फ्री रहेगा।
दूसरा चरण मविकला गांव से सहारनपुर बाईपास तक 118 किलोमीटर लंबा है। यह 6-लेन का ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे है, जो बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर से होकर गुजरता है। इस खंड में कुल 7 इंटरचेंज और 60 अंडरपास बनाए जा रहे हैं।
तीसरा चरण 40 किलोमीटर लंबा है, जो एनएच 307 पर सहारनपुर पूर्वी बाईपास से गणेशपुर तक जुड़ता है। यह मार्ग राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के दक्षिणी प्रवेश द्वार से होकर गुजरता है।
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परियोजना की प्रगति और वर्तमान स्थिति
एक्सप्रेसवे के पहले चरण का कार्य लगभग पूरा हो चुका है और इसे जल्द ही जनता के लिए खोले जाने की उम्मीद है। हालांकि, एलिवेटेड सेक्शन में वेयरिंग फॉल्ट के कारण उद्घाटन में देरी हुई है, और अब इसे फरवरी 2025 तक खोलने की योजना है।
दूसरे और तीसरे चरण के कार्य भी तेजी से प्रगति पर हैं, और पूरी परियोजना के मई 2025 तक पूर्ण होने की उम्मीद है।
विशेषताएँ और लाभ
एक्सप्रेसवे के निर्माण में पर्यावरण संरक्षण का विशेष ध्यान रखा गया है। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र में 12 किलोमीटर का एलिवेटेड कॉरिडोर बनाया जा रहा है, ताकि वन्यजीवों की आवाजाही में बाधा न आए।
इस परियोजना से न केवल दिल्ली और देहरादून के बीच यात्रा का समय कम होगा, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में आर्थिक विकास, पर्यटन को बढ़ावा, और प्रदूषण में कमी जैसे लाभ भी होंगे।
निष्कर्ष
दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे भारत के बुनियादी ढांचे के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। यह न केवल यात्रा को सुगम और तेज बनाएगा, बल्कि क्षेत्रीय विकास, पर्यावरण संरक्षण, और आर्थिक समृद्धि में भी योगदान देगा।
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