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गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों की मानसिक सेहत का रखें ख्याल – एंग्जायटी को पहचानें और रोकें

गर्मियों की छुट्टियां बच्चों के लिए मस्ती और आराम का समय मानी जाती हैं। स्कूल का बोझ कम हो जाता है, होमवर्क की चिंता नहीं रहती और खेलने का समय भी बढ़ जाता है। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि कुछ बच्चे इस समय में भी खुश नहीं दिखते? वो अकेले रहना पसंद करते हैं, चिड़चिड़े हो जाते हैं या फिर हर समय मोबाइल में खोए रहते हैं। हो सकता है कि ये सिर्फ बोरियत नहीं, बल्कि एंग्जायटी (anxiety) यानी मानसिक तनाव का संकेत हो।

आज की इस तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में बच्चे भी मानसिक दबाव झेल रहे हैं। गर्मी की छुट्टियों में जब दिनचर्या बदल जाती है और सामाजिक मेलजोल कम हो जाता है, तो उनका मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि माता-पिता बच्चों की मानसिक स्थिति पर ध्यान दें।

एंग्जायटी क्या है और यह बच्चों को कैसे प्रभावित करती है?

एंग्जायटी

एंग्जायटी एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को लगातार चिंता, डर या घबराहट महसूस होती है। बच्चों में यह स्थिति थोड़ी अलग तरीके से प्रकट होती है। कभी-कभी वे खुलकर नहीं बता पाते कि उन्हें कैसा लग रहा है। लेकिन उनके व्यवहार में बदलाव आना, छोटी-छोटी बातों पर रो देना, नींद न आना या अचानक चुप हो जाना—ये सभी संकेत हो सकते हैं कि बच्चा अंदर से परेशान है।

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों का रूटीन पूरी तरह बदल जाता है। स्कूल, दोस्त, टीचर, पढ़ाई—all gone! और जब इस खाली समय में उन्हें दिशा नहीं मिलती, तो उनका मन भटकने लगता है और वही एंग्जायटी का कारण बन सकता है।

बच्चों में एंग्जायटी के लक्षण कैसे पहचानें?

हर बच्चा अलग होता है, लेकिन कुछ सामान्य लक्षण हैं जो यह संकेत दे सकते हैं कि बच्चा एंग्जायटी से गुजर रहा है:

हर समय उदास या चुप रहना

खाना कम कर देना या ज़्यादा खाना

नींद की परेशानी या बुरे सपने आना

बिना कारण गुस्सा या चिड़चिड़ापन

पेट दर्द या सिरदर्द की बार-बार शिकायत

खेल-कूद या पसंदीदा एक्टिविटीज़ से दूरी बनाना

बार-बार “मुझे डर लग रहा है” जैसा कहना

अगर ये लक्षण लगातार दिख रहे हैं, तो इसे नजरअंदाज न करें। बच्चे खुद नहीं समझ पाते कि उन्हें क्या हो रहा है, इसलिए उन्हें आपके साथ और सहारे की जरूरत होती है।

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों को एंग्जायटी से कैसे बचाएं?

एंग्जायटी

 रूटीन में थोड़ी स्थिरता बनाए रखें

छुट्टियों में देर तक सोना और बिना टाइम टेबल के दिन बिताना बच्चों को कुछ समय बाद असहज करने लगता है। एक सामान्य रूटीन तय करें — जैसे सुबह उठने, नाश्ते, खेलने और सोने का समय फिक्स रखें।

 स्क्रीन टाइम को करें सीमित

फोन, टैबलेट या टीवी ज़्यादा देखने से बच्चों का दिमाग और शरीर दोनों सुस्त हो जाता है। हर दिन के लिए एक तय समय तय करें और बाकी समय उन्हें किताबें पढ़ने, ड्रॉइंग, पज़ल या परिवार के साथ वक्त बिताने के लिए प्रेरित करें।

 खुले में खेलने दें

बच्चों को सूरज की रोशनी और ताज़ी हवा बहुत फायदेमंद होती है। रोज़ाना उन्हें बाहर खेलने के लिए भेजें — चाहे वो पार्क हो, छत हो या घर के बाहर का आंगन।

 बच्चों से खुलकर बात करें

उनसे पूछें कि उनका दिन कैसा रहा, क्या अच्छा लगा और क्या नहीं। उन्हें बताएं कि उनके भावनाएं ज़रूरी हैं और वे आपसे सब कुछ शेयर कर सकते हैं। यह विश्वास उन्हें अंदर से मजबूत बनाता है।

 क्रिएटिव गतिविधियों में लगाएं

ड्राइंग, म्यूजिक, डांस, स्टोरी टेलिंग, गार्डनिंग जैसी गतिविधियां बच्चों के अंदर की भावनाओं को बाहर लाने में मदद करती हैं और तनाव कम करती हैं।

 योग और ध्यान का अभ्यास कराएं

बच्चों के लिए सरल योगासन और 5-10 मिनट का ध्यान (मेडिटेशन) उन्हें मानसिक रूप से शांत और केंद्रित बना सकता है। इसे रोज़ाना की आदत में शामिल करें।

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 नकारात्मक बातों से बचाएं

एंग्जायटी

घर में झगड़े, चीख-चिल्लाहट, या टीवी पर डरावनी और तनाव देने वाली चीज़ें बच्चों की सोच पर असर डाल सकती हैं। उनके आसपास का माहौल शांत और सकारात्मक रखें।

माता-पिता की भूमिका सबसे अहम

बच्चों की मानसिक सेहत की नींव घर से ही बनती है। यदि आप उन्हें समझने और समय देने की कोशिश करते हैं, तो वे भी खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। यह सोचें कि क्या आप हर दिन अपने बच्चे के साथ कुछ ऐसा कर रहे हैं जिससे उसे लगे कि वह अकेला नहीं है?

बच्चों के मन में बहुत कुछ होता है, बस उन्हें कहने का तरीका नहीं आता। आप ही वो माध्यम बन सकते हैं, जो उनकी खामोशी को सुन सके।

कब डॉक्टर से मिलना चाहिए?

अगर आपके सारे प्रयासों के बावजूद बच्चा लगातार उदास, डरपोक, अकेला या चिड़चिड़ा बना हुआ है, और उसकी दिनचर्या में कोई सुधार नहीं हो रहा, तो बाल मनोचिकित्सक या काउंसलर से सलाह लेना ज़रूरी हो सकता है। इसमें कोई शर्म की बात नहीं है — मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक स्वास्थ्य।

गर्मियों की छुट्टियां केवल मस्ती और खेलने का समय ही नहीं होतीं, ये बच्चों के मानसिक विकास और भावनात्मक संतुलन का भी अहम मौका होती हैं। अगर सही तरीके से उनका मार्गदर्शन किया जाए, तो ये छुट्टियां बच्चों को भीतर से और मजबूत बना सकती हैं।

तो इस बार सिर्फ गर्मी से नहीं, बच्चों के मन के तापमान से भी सजग रहें।

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